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Monday, 20 October 2014

NSEL निवेशक की विडंबना और भारत के प्रधान सेवक को दिवाली पर पत्र

इस  धनतेरस को धन  पूजने धन कहाँसे लाऊं मैं
लूंट लिया सर्वस्व   मेरा  अब कैसे दीवाली मनाऊँ मैं ?

किस रावण की काटूं बाहें, किस लंका को आग लगाऊँ मैं 
घर घर रावण पग पग लंका, इतने राम कहाँ से लाऊँ मैं ? 

भग्न हृदय है, मन मे ग्लानि , दीवाली के दीप कैसे जलाऊँ मैं ?
चार वर्ष की विषम वेदना , मुख पर  स्मित  कंहासे लाऊँ मैं ?


चार सालसे अविरत अन्याय  गीत पर्व  के   कैसे गाऊँ मैं? 
बाहर दीवाली ,दिल  मे होली , मेवा मिष्‍टी अब कैसे खाऊँ मैं ?  


डगर डगर भटक कर शिथिल चरण अब द्वार किसके जाउ मैं ?
नैतिकता बिकती बाजारो मे अंतर की व्यथा किसे सुनाऊँ मैं?

काली चौदस सी फैली कालिमा  जीवनसे   कैसे हटाऊँ मैं ?

जीवन के दलदल मे फसा  नव वर्ष की उषा कैसे  प्रकटाऊं मैं  ?

बीच चौराहे  निर्लज्ज  दुशासनने निवेशको के  लूट लिये चिर 

निर्बल कानून , भ्रष्ट व्यवस्था देख रहे तमाशा बन मुक बधिर 

13000 परिवारों के सपने लूंट आजभी वो दे रहा पिडीतोको ललकार  

चार सालसे उस चोर की तानाशाही आखिर क्यों सह रही मोदी सरकार? 

भ्रष्ट मंत्री  भ्रष्ट संत्री दिखे , पर अब आप पर अटूट विश्वास है

आप ना अन्याय होने दोंगे  जब तक आपके घट मे श्वास है

बहुत रह चुके ख़ामोश , अब कार्य कुछ ऐसा भारत के सेवक प्रधान करो  

13000 गृहस्थी लूटने वाले , भ्रष्टाचारी रावण का अब आप  सरसंधान करो 

This poem represents the pain , helplessness , frustration and anguish of 13000 NSEL investors who are seeing Fifth Black Diwali.