विवश और निर्धन होकर छु रहे आत्महत्या की कगार को
अब तो समजो देश बांधवोकी व्यथा और उनके संतापको
यह देख नींद कैसे आ सकती है भारत के सेवक प्रधानको
ना सिर्फ धन लुंटा इसने उजाड़ दिया हमारे पूर्ण संसारको
कईं घरोंमे बुझे हुए चूले मांग रहे आपसे सिर्फ एक अंगारको
अब तो सुनो पीड़ा हमारी और हमारे न्याय के अधिकारको
यह देख नींद कैसे आ सकती है भारत के सेवक प्रधानको
मंत्री संत्री और न्यायालय खरीदना चाहता वह सबके ईमानको
अपनी पहुँचपे इतराता कानून के उपर समजता अपने आपको
वह रोंद्ता रहा हर एक नियम और भारत के संविधान को
यह देख नींद कैसे आ सकती है भारत के सेवक प्रधानको
क्यों चुप्पी साध बेठे है आप क्या हुआ 56" के सीने की आगको
कब तक सहोगे रावण को और उसके हर एक जघन्य पापको
UPA के चोरोने पाला और खूब दूध पिलाया इस विषधर सांपको
यह देख नींद कैसे आ सकती है भारत के सेवक प्रधान को
समय आ गया है काट दीजिये उसके कानून से लम्बे हाथ को
ना कीजियेगा माफ उसको और उसके हर घृणित अपराधको
दे रहा वह चुनोती आज आपको और दिल्ली के दरबार को
यह देख नींद कैसे आ सकती है भारत के सेवक प्रधानको
करिये दमन दुशाशन का और कीजिये शमन हमारे तापको
बता दीजिये दुष्टको उसने इसबार ललकारा है अपने बापको
हमारी शत कोटि दुआये हमेशा हमारे लाडले सेवक प्रधानको